Saturday, December 21, 2013

गिरता पुरुष ,मुखर होती नारी ...

१६ दिसम्बर २०१२ के बाद बहुत कुछ बदलाव देश में हुआ , विशेषकर महिलाओं की अस्मिता को लेकर एक बहस शुरू हुई और एक निष्कर्ष तक भी पहुची |संसद ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा के लिए कड़े प्रावधान वाला कानून पारित किया किन्तु महिलाओं के उत्पीड़न की घटनाओं में कमी नहीं आई | कोई भी कानून दोषी को कड़ी से कड़ी सजा तो दे सकता है लेकिन अपराध होने से पूर्णतया नहीं रोक सकता |ये भी सच है लचर कानून अपराधों में बढ़ोत्तरी का कारण बनता है |
निर्भया के साथ हुए अत्याचार के बाद नारी उत्पीडन के प्रति सोते हुए समाज में नई चेतना तो जरूर आई किन्तु  पुरुषों का नैतिक पतन नहीं रुका |
२०१३ का वर्ष पुरुषों के नैतिक पतन का साक्षी बनकर इतिहास के काले पन्नों में सिमट जायेगा क्यूंकि इसी वर्ष समाज को धर्म का पाठ पढाने वाले आशाराम और उनके पुत्र नारायण साईं के महिलाओं के प्रति अधर्म के कृत्यों का पर्दाफाश हुआ |न्याय की मुर्ति कहे जाने वाले न्यायमूर्ति गांगुली ने एक लड़की के साथ कथित तौर पर अन्याय किया |समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकार तरुण तेजपाल ने अपनी बेटी की हमउम्र लड़की के साथ शोषण किया | राजस्थान में जनता का प्रतिनिधित्वा करने वाले एक मंत्री ने भी एक  महिला का शोषण किया |इन सभी घटनाओं को आसानी से नहीं भुलाया जा सकता क्यूंकि ये आधी आबादी के साथ हो रहे अन्याय की सूचक हैं |
इन सभी घटनाओं के खुलासे से इस बात को बल मिला है की अब महिलाएं अन्याय के प्रति मुखर हुईं हैं ,वो अब अपने को उपभोग की वस्तु बने नहीं रहने  देना चाहती हैं  |दिल्ली विधानसभा के अप्रित्याषित नतीजे भी इसी ओर इशारा करते हैं की महिलाओं की सुरक्षा एक अति महत्वपूर्ण मुद्दा है |किसी से मन के  भावों को व्यक्त करना गलत नहीं माना जा सकता किन्तु किसी का शारीरिक या मानसिक शोषण करने वालो को उचित दण्ड अवश्य मिलना चाहिए |
निर्भया के दर्द को जीने वाली देश की हर एक महिला में अत्याचार के प्रति आवाज उठाने की जो ऊर्जा उत्पन्न हुई है वो बनी रहनी चाहिए |निर्भया  का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा |अब किसी भी महिला के साथ निर्भया जैसा कुकृत्य न हो सके और कोई भी महिला अन्याय के प्रति शांत न रहे 

Tuesday, May 8, 2012

माँ कभी खफा नहीं होती ......


“मुनव्वर माँ के आगे कभी खुल के मत रोना ,जहाँ बुनियाद हो वहाँ इतनी नमी अच्छी नहीं होती “
प्रसिद्ध और महान शायर मुनव्वर राना की इस एक पंक्ति में माँ को बहुत ही अच्छे से चित्रित करने की कोशिश हुई है |व्यक्ति के जीवन रुपी ईमारत की बुनियाद माँ है |ईमारत चाहे जैसी भी बने लेकिन सबसे पहले बुनियाद डालनी ही पड़ती है, उसी प्रकार किसी भी जीवन की उत्पत्ति के लिए माँ जैसी बुनियाद आवश्यक है |”माँ “ को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है किन्तु अगर मैं “माँ “ को परिभाषित करने की असफल कोशिश करता हूँ तो पाता हूँ की “ माँ “ वो है जो सिर्फ और सिर्फ देना जानती है|जब किसी बच्चे का जन्म होता है तभी एक माँ का भी जन्म होता है किन्तु माँ बच्चे के जन्म लेने के पहले ही उसकी नाभि के द्वारा उसको श्वांस और भोजन देने लगती है |सबसे पहले जन्म देना ,फिर जीवन बनाये रखने क लिए स्तनपान कराना ,चलना सिखाने के लिए सहारा देना ,हमारे मुख को शब्द देना और संस्कार की वो बुनियाद देना जिसपर हम अपना महल खड़ा करते हैं |अपने भारत देश में धरती और राष्ट्र को भी माँ की संज्ञा दी गई है और यह पूर्णतः सही भी है क्यूंकि धरती ही हमको वो सब कुछ देती है जिसके कारण हमारा जीवन संभव है और राष्ट्र हमारी पहली और आधारभूत पहचान है|शायद हमारे पूर्वजों ने धरती और राष्ट्र को माँ की संज्ञा दे के माँ के महत्व को समझाने की कोशिश की होंगी |

                    
आधुनिकता के इस दौर में मानव मूल्यों का पतन हो रहा है| प्रातः उठकर धरती माँ और जन्मदात्री माँ को प्रणाम करने वाले देश में माँ अपमानित हो रही है |विलासिता में डूबे लोंगो को माता – पिता बोझ लगने लगे हैं |कुछ लोग शायद ये भूल जाते हैं की आज वो जिनको खाना देने में तकलीफ महसूस कर रहे हैं शायद कभी उसी माँ ने खुद भूखे रहकर अपने हिस्से की रोटी उनको खिला दी होंगी |जो माता –पिता भोजन के लिए आश्रित नहीं है वो शब्द बाणों से घायल किये जा रहे हैं|माँ हमारे मुख से पहला शब्द सुनने को व्याकुल रहती है और  बहुत सी कोशिश करके हमको बोलना सिखाती है और आज लोग उसी के द्वारा सिखाए शब्दों का प्रयोग उसको कष्ट पहुचाने मैं कर रहे हैं |जब हम अपनी आजीविका का प्रबंध कर लेते हैं और अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं तो भूल जाते हैं की जब सबसे पहले हम खड़े हुए थे तो माँ ने हमको सहारा दिया होगा |
                     बहुत सी माँ समय के साथ अपने आप को बदल नहीं पाती और उनके बच्चे जब बड़े होते हैं तो वो उनसे परेशान होकर उनको वृधाश्रम भेजना चाहते हैं |लेकिन कोई भी माँ बच्चे की शैतानी से परेशान होकर उसको किसी आश्रम में भेजना नहीं चाहती मतलब की अपने से दूर नहीं करना चाहती |
मैं दरिया हूँ मुझे अपने किनारे याद रहते हैं,
किसीभी हाल में वो मुझसे गाफिल हो नहीं सकता,
खुदा है वो उसे कीडे-मकोडे याद रहते हैं,
खुदा ने ये सिफत दुनिया की हर एक माँ को बक्शी है
,के वो
पागल भी हो जाये तो बेटे याद रहते हैं |     - मुनव्वर राना

                    माँ अगर बीमार हो जाये और किसी को एक रात जागना पड़े माँ की सेवा के लिए तो उसको बड़ा कष्ट होता है लेकिन वो ये भूल जाता है की पता नहीं कितनी रातें माँ उसके लिए जागी होंगी |वृद्ध माँ को सर्दी की रातों में कम्मल उढ़ाना भूल जाने वाले बेटे ये भूल जाते हैं कि उनको सर्दी से बचाने के लिए उसी माँ ने कितनी रातें उनके द्वारा गीले किये गये बिस्तर पर काटी होंगी |
            माँ अपने बच्चे के लिए अपनी आखरी स्वांस तक प्रयत्न करती है और दुनिया का सबसे निम्न कोटि का काम भी करने को तैयार हो सकती है |एक माँ चार चार बच्चों का पालन पोषण कर सकती है लेकिन चार बच्चों से एक माँ का पालन मुश्किल हो जाता है |
               जब व्यक्ति जीवन में सबसे जादा हताश होता है तो सिर्फ एक माँ ही होती है जिसके पास जाने पर उसको सिर्फ और सिर्फ सकारात्मक स्पर्श और आत्मीयता मिलती है |जो माँ सिर्फ हमारे जन्म के समय को छोड़ हमको कभी भी रोता हुआ नहीं देख सकती उसकी आँखों में हम आंसू क्यूँ लायें|
            माँ के ऋण को हम कभी नहीं उतार सकते |जो लोग माँ के द्वारा किये गये असाधारण कार्यों को महज कर्तव्य और धर्म कि संज्ञा देते हैं उनसे मेरा विनम्र निवेदन है कि वो भी सिर्फ अपना कर्तव्य और धर्म निभाते हुए अपनी माँ कि सेवा करते रहें |मैं भी अपने शब्दों को सफल करने का सार्थक प्रयत्न करूँगा |
एक माँ ही है जो हर हालात में अपने बच्चे के लिए दुआ करती है |बिना मांगे मिली इस अनमोल मुराद की सार्थकता बनाये रखिये |अन्त में मुनव्वर राना जी की ही दो पंक्तियाँ दुनिया की सभी माँ के लिए श्रद्धा सुमन के रूप में
लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो कभी खफा नहीं होती



Monday, April 30, 2012

सोशल मीडिया-"आम आदमी की खास आदमी तक पहुचती आवाज़"

सोसिअल नेटवोर्किंग बन गई देखो एक जंजाल
कुछ कि कुर्सी छिन गई, कुछ दिखते बेहाल
कुछ दिखते बेहाल ,माँग रोक की करते
स्वार्थों के लिए अतिक्रमण आजादी पर करते
सोशल मीडिया एक ऐसा ज्वलंत विषय बन गया है जिस पर बहस होनी ही चाहिए |कोई भी ऐसा संचार का साधन जो की आम जनमानस को जोड़ने का काम करे और लोगो तक सूचना का प्रसारण करे वो किसी भी तरीके से गलत नहीं हो सकता |सिक्के के दो पहलू तो हमेशा ही रहेंगे ,वैसे ही सोशल मीडिया के भी कुछ लाभ और हानि हैं |आज के व्यस्त जीवन में बौद्धिक वर्ग के लिए सोशल मीडिया संचार और सूचना का सबसे बड़ा साधन बनने की तरफ अग्रसर है |अपने स्वार्थों की पूर्ती और रक्षा ये साधारण मानव की प्रकति है ,कुछ ऐसे ही स्वार्थी लोग सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग कर रहे हैं |
हम अगर बीते कुछ वर्षों पर ध्यान दे तो सोशल मीडिया विश्व भर में क्रांति का अग्रदूत रहा है |भारत के परिपेक्ष में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है |फिर चाहे वो अन्ना का अनशन हो ,बाबा रामदेव का आंदोलन और उसका दमन सभी को सोशल मीडिया ने बौद्धिक वर्ग तक पहुचाया |
लुप्त होते भारतीय मूल्यों का पुनः उत्थान जिस तरह से सोशल मीडिया की वजह से हो रहा है वो सराहनीय है|भारतीय इतिहास कि त्रुटियों पर जितना मुखर आज सोशल मीडिया है उतना सूचना का कोई और माध्यम नहीं है और इसका प्रमाण ये है कि आज २३ मार्च(शहीद दिवस) महज एक साधारण दिन नहीं रह गया है लोग उस दिन वीर शहीदों को विशेष रूप से स्मरण करते हैं और उनसे जुडी जानकारी प्राप्त करते हैं |जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लेता वो बिनाश कि तरफ अग्रसर होता है,ऐसे में सोशल मीडिया हमको अपने इतिहास कि जानकारी देके बहुत कुछ सिखाता भी है |
सोशल मीडिया न्याय पाने और सही विषय पर जनसमर्थन प्राप्त करने का एक सुलभ साधन बनकर उभरा है,ऐसे में इसका विरोध बहुत से प्रश्न खड़े करता है |हाल में ही सी.डी. प्रकरण में एक महानुभाव का नाम आया माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने सी.डी. के प्रकाशन पर रोक लगा दी और तर्क दिया गया कि इसमें उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास किया गया है |मैं किसी के व्यक्तिगत जीवन पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा परन्तु उसमे वो महानुभाव महिला वकील से जो वादा कर रहे थे वो तो जनता तक पहुचना ही चहिये था |सोशल मीडिया के माध्यम से जब जन साधारण तक ये बात पहुच गई तो महानुभाव सोशल मीडिया पर नियंत्रण कि माँग करने लगे |
भ्रष्टाचार और सरकार कि गलत और सही योजनाओं का प्रचार जिस गति से सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है और जनमानस को जागरूक कर रहा है वो सराहनीय है |
सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ असामाजिक तत्व भी सक्रिय हैं ऐसे में इस पर नियंत्रण जरूरी है किन्तु ये ध्यान रखने कि जरूरत है कि ये आम आदमी कि ,सरकार और समाज की बुराइयों के विरुद्ध आवाज को दबाने का प्रयास ना बन जाये |ये बौद्धिक लोगों को जोड़ने का माध्यम हैं जो भारत की अखंडता और उसकी समृधि के प्रति संवेदनशील हैं|
सोशल मीडिया आम जन मानस की वो आवाज है जो खास लोगों तक आसानी से पहुच रही है |

Thursday, April 26, 2012

सचिन "क्रिकेट का भगवान ,कांग्रेस का तारणहार"

                      भारत सरकार का कोई भी काम आज कल सीधा नज़र नहीं आता कुछ ऐसा ही आज भी हुआ सरकार ने अचानक ही सचिन तेंदुलकर का नाम राज्यसभा के लिए गृहमंत्रालय को कथित तौर पर  भेज दिया |भई जब ये विश्वास हो जाये कि ईश्वर भी डूबती नैया पार नहीं कर सकता तो हर प्रयोग कर लेना ही उचित है |हम लोग सुनते रहते हैं कि क्रिकेट अगर धर्म है तो सचिन क्रिकेट के भगवान हैं और हैं भी |परन्तु मुझको लगता है कि सचिन कांग्रेस पार्टी के तारण  हार हैं क्यूंकि जब प्रणव मुखर्जी 16 मार्च 2012 को  उथल पुथल भरा आम  बजट पेश कर रहे थे और सभी न्यूज़ चैनल उस पर बहस कर रहे थे तभी सचिन ने शतकों का शतक बना दिया और बहस का केंद्र बजट कि जगह सचिन हो गये,शायद भारत सरकार और प्रणव दा ने सचिन को  धन्यवाद भी कहा होगा संकट से बचाने के लिए  |आज फिर से जब सरकार बोफोर्स घोटाले में हुए खुलासे से बेचैन थी तो अचानक सचिन का नाम राज्यसभा के लिए भेज कर सरकार ने न्यूज़ चैनल पर छाये बोफोर्स के मुद्दे को कुछ हद तक फीका किया है | 

                  सचिन महान है और इसके लिए अब किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता भी नहीं है ,किन्तु अभी वो क्रिकेट में सक्रिय हैं |ऐसे वक्त में क्या उनका नामांकन राज्य सभा में सांसद के लिए होना उचित है |क्या वो अपने खेल और संसद के प्रति अपने कर्तव्यों का सही निर्वहन कर पाएंगे ?उनके स्थान पर कपिल देव,विश्वनाथन आनंद ,सुनील गावस्कर, धनराज पिल्ले,अभिनव बिंद्रा आदि किसी को ये सुअवसर नहीं मिलना चाहिए ??क्या सरकार सिर्फ वहीँ निर्णय करती है जिसमे कांग्रेस का फायदा हो ??क्या कांग्रेस सचिन की लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहती है ?वैसे तो सचिन भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन कांग्रेस  मराठी मानुष के नाम पर महाराष्ट्रा में इसका लाभ उठाना चाहेगी  |

               सचिन को अगर ये अवसर मिलता है तो ये सौभाग्य ही होगा हमारे लिए और भारतीय संसद के लिए ,परन्तु ये उचित समय नहीं है |अभी सचिन में बहुत ही जादा क्रिकेट बाकी है और भारतीय क्रिकेट को उनकी आवश्यकता भी है |सचिन जिस शिखर पर है वहाँ उनको ये अवसर आगे भी मिल सकता है |सचिन की लोकप्रियता का ही असर है की किसी भी राजनीतिक दल ने इस प्रस्ताव का विरोध नहीं किया और नैतिक तौर पर करना भी नहीं चाहिय|बचपन में पढ़ा था कि राष्ट्रपति कुछ सांसदों को मनोनीत करती है परन्तु क्या ये उनका कर्तव्य नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों को मनोनीत करें जो इसका उपयोग देश की चिंताओं का निवारण करने में कर सकें|हम पहले भी देख चुके हैं की स्वर कोकिला भारतरत्न लता मंगेशकर और भी अन्य लोगों को ये अवसर दिया गया परन्तु वो कुछ क्रन्तिकारी परिवर्तन नहीं कर पाए, ऐसे में जब की सचिन क्रिकेट में सक्रिय हैं तो क्या वो इस अवसर का सदुपयोग कर पाएंगे ??
               
                हमारी संसद को बहुत से योग्य लोगों की आवश्यकता है, सचिन हर मापदंड पर खरे उतरते हैं किन्तु जब तक वो क्रिकेट में सक्रिय हैं वो  उचित न्याय नहीं कर पाएंगे राज्यसभा सांसद की जिम्मेदारी के साथ |संविधान की ये परिपाटी सिर्फ स्थानापूर्ति बनकर रह जायेगी |

             सरकार सोच रही है सचिन के सहारे अपनी नैया पार लगा लेगी परन्तु वो भूल रही है की सचिन क्रिकेट के भगवान है ना की  " सनातन भगवान "|

Tuesday, April 24, 2012

प्रधानमंत्री "मौन और विवश "

आओ हम बात करें देश के विधान की
और फिर बात हो देश के प्रधान की
योग्यता,निष्ठा,कर्म और ज्ञान की
या फिर मौनसाधे विवश इन्सान की


महंगाई बढ़ रही आप मौन क्यूँ हैं
हो रहा लूट पाट आप मौन क्यूँ हैं
अपने पद का उपयोग कीजिये
दोषी लोगों को आप सजा दीजिए

भूख से कोई मरे गुनाहगार कौन है
आज भ्रष्टाचार पे विधान क्यूँ मौन है
मिलती नहीं शिक्षा देश के जवान को
स्वास्थ्य लाभ मिलता नहीं आम इन्सान को

अब आप जागिये देश की पुकार है
देश में चारों ओर मचा हाहाकार है
व्यक्ति विशेष को छोडकर आप धर्म निभाइए
अपनी निष्ठा का केंद्र बस देश को बनाइये

Sunday, April 22, 2012

सोसिअल नेटवोर्किंग और नेता- "करना पड़ता है ....."

इन दिनों सोसिअल (सामाजिक) नेटवोर्किंग का नशा सभी पर चढा हुआ है |भई हम भी उसी में शामिल हैं |अब बरसात आएगी तो मेढक तो पैदा होंगे ही ,लेकिन हम शुरुवाती दिनों के मेढक है|हाल ही में उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव हुए और निकाय चुनाव होने जा रहे हैं  ,शायद ही कोई उम्मीदवार ऐसा हो जिसने फेसबुक पर अपना खाता न खोला हो |ऐसे ही कुछ कथित मान्यवरों से मैंने भी पूछ लिया ,अचानक ये क्यूँ ??क्या आप इसको खुद संचालित करते हैं, लोगो के प्रश्नों का खुद ही जवाब देते हैं ?उनमे से कुछ नेता ,नहीं नहीं राजनीतिज्ञों ने मुखर होके बताया अरे शुक्ला जी "राजनीतिज्ञों का ईमानदार दिखना जरूरी है ,ईमानदार होना नहीं " उसी तरीके से सोसिअल नेटवोर्किंग पर होना जरूरी है ,उसको संचालित करना आना जरूरी नहीं |
                      फिर अचानक मुझको याद आया कि एक माननीय के फेसबुक पर उन्ही की पार्टी के नेता जी का कार्टून लगा था |मैंने पूछा क्या ये उन्होंने ही लगाया है तो उन्होंने कहा कि अब आपतो जानते ही हो हम दसवीं भी पास नहीं कर पाए हम क्या चलाएंगे ये कंप्यूटर- सम्पयूटर,एक लड़के से कह दिया था कि कभी कभी देख लिया करना उसने ही लगाई होंगी|हमने भी मौका देख कर एक राय दे डाली क्यूँ ना आप एक लड़के को इसका काम सौप दे और उसको कुछ मेहनताना भी दे दिया करे |मैंने सोचा चलो इसी बहाने राजनीतिज्ञ महोदय किसी का तो भला करेंगे |
                 कुछ राजनीतिज्ञों  को सोसिअल नेटवोर्किंग का फायदा तो पता है लेकिन नुकसान नहीं |सोसिअल नेटवोर्किंग का ही असर है कि राजनीतिज्ञों और सरकार की सारी गलत और सही बातें जंगल की आग की तरह या कह ले की कसी के प्रेम प्रसंग की तरह फैलती हैं |जैसा की अभी कुछ दिन पहले हुआ जब एक महाशय की सी.डी. की खबर समाचारों में तो नहीं आई  लेकिन सोसिअल नेटवोर्किंग के माध्यम से पहुच गई लोगो तक और फिर बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के संदेशों का भी प्रसार सोसिअल नेटवोर्किंग की ही देन है |    
             मेरा तो ये मानना है अगर ये राजनीतिज्ञ खुद ही संचालित करने लगे फेसबुक तो कुछ तो जनमानस का दर्द और समस्यांए इनको पता चलेंगी |
          जिस देश में सबसे जादा युवा वोटर हो वहाँ सोसिअल नेटवोर्किंग का प्रयोग" करना पड़ता है" |लेकिन अच्छा ये होता कि सबसे जादा युवा वोटर के साथ साथ सबसे जादा फेसबुक प्रयोग करने वाले भी भारत में ही होते |

Friday, April 20, 2012

सुदूर पूर्वोत्तर "मिजोरम" - "भाई चिंकी कैसी हैं ?"

       भई बचपन से सुनते आ रहे थे की भारत विविधताओं का देश है ,और है भी ,इसका एहसास हुआ भी जब पापी पेट की खातिर अपनी रोजीरोटी के लिए भारत के कई हिस्सों में विचरण करके पहुच गये सुदूर पूर्वोत्तर राज्य “ मिजोरम “, जिसकी सीमा से म्यांमार (बर्मा) और बांग्लादेश सटे हुए हैं |यहाँ पहुँच के बहुत से मित्रों से बात हुई, सबने बहुत सी बातें पूछी यहाँ के बारे में उनमे से एक बात जो अमूमन सभी ने पूछी या यूँ कहें की एक ऐसी बात जो थोड़ी बहुत सभी को पता थी यहाँ के बारे में वो थी “ भाई वहाँ की चिंकी(छोटी आँखों वाली लड़कियां) कैसी हैं ,सुना है बहुत सुन्दर होती हैं ?” हमने भी सोचा चलो कुछ तो है जो दूर उत्तर में बैठे मित्रों को पूर्वोतर की याद दिलाता है |सुंदरता है भी मिजोरम में ,मिजोरम के लोगो में | प्रकृति की गोद में पहाड़ियों पे बसा मिजोरम शायद भारत का सबसे स्वक्ष प्रदेश होगा ,ये एक ऐसी बात है जो मुझको लगता है भारत के हर प्रदेश तक पहुचनी चाहिए |यहाँ का मौसम बिल्कुल वैसे ही रंग बदलता है जैसे कि नेता अपनी बात बदलते हैं|अनूप जी के परामर्श के बाद सोचा कि आपको भी बताऊँ अपना अनुभव |
                   
यहाँ आकर मुझको एहसास हुआ किस तरह से सभी में समानता है ,खास तौर से मिजो (मिजोरम के निवासी ) लोगों में ,अमीरी गरीबी का कोई फर्क मालूम ही नहीं पड़ता ,सब आपस में ऐसे मिलते हैं जैसे बहुत ही खास हो एक दूसरे के|महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों में समानता है ,सिर्फ कागजों में नहीं वास्तविकता में |विचारों में खुलापन है, क्या बताएं हमको मिजो भाषा ही नहीं आती वरना हम भी विचारों के खुलेपन का कुछ तो अनुभव लेते ही या अनूप शुक्ला जी कि भाषा में बोल्ड होने कि कोशिश करते|मानव विकास सूचकांक में दूसरे नंबर का ये प्रदेश शिक्षा में भी दूसरे स्थान पर है|वन सम्पदा में धनी मिजोरम के हर घर में आपको सोफा जरूर मिलेगा भले ही परिवार गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करता हो | ईसाई धर्म के अनुयायी सबसे जादा हैं या यूँ कहें वहीँ दिखते हैं हर जगह| हर गली –मोहल्ले ,गाँव- कस्बे में गिरिजाघर जरूर है |रविवार को तो मानो निषेधाज्ञा(कर्फ़्यू) लग जाता है सिर्फ लोग नज़र आते हैं तो गिरिजा घर में अब वहां बच्चे बूढ़े या जवान सभी पहुचते हैं |भई उस दिन तो चिंकी देखने वाली ही होती हैं |यहाँ कि सभ्यता ,वेश-भूषा और रहन सहन में पाश्चात्य सभ्यता कूट कूट के भरी है |उसकी ही देन है कि एड्स और एड(सहायता) दोनो ही खूब मिल रहे हैं इस प्रदेश को ,एड भारत सरकार और मिशनरीज़ दोनो कि ही तरफ से खूब मिलती है | सौंदर्य प्रसाधन (कॉस्मेटिक) की जितनी खपत इस प्रदेश में होती है उतनी तो उत्तर प्रदेश(सबसे जादा जनसँख्या वाला प्रदेश ) में भी नहीं होती होगी|
           भई शादी तो बस ४०० – ५०० रुपये में ही हो जाती है और अगर खट पट हो जाये तो तलाक भी चुटकियों में हो जाता है और २०-३० रुपये काट के बाकी रुपया वापस,मतलब की आम के आम और गुठलियों के दाम भी|शादी में दहेज के तौर पर तकिया जरूर दी जाती है ,अब मैं ये पता लगाना तो भूल ही गया कि तकिया इतनी जरूरी क्यूँ?
  
       गीता ,गोविन्द और गौतम के इस देश में मिजोरम जैसा भी १ प्रदेश है जहाँ शायद ही कोई जानवर हो जिसको मारके खाया ना जाता हो “ गाय ” भी  ?लोगो को सबसे जादा पसंद है “कुत्ता”,चलो भई भारत के इस प्रदेश में तो लोगों को कुत्ता पसंद आया|सुवर सबसे जादा खाया जता है और व्यापार और रोजगार का सबसे बड़ा साधन भी है |

भारत का एक प्रदेश जिसकी भाषा(मिजो) में सिर्फ अंग्रेजी की वर्णमाला का प्रयोग  होता है |

खेल के विकास में प्रदेश ने बहुत ही उन्नति की है ,ग्रामीण स्तर तक खेल के मैदान हैं और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह यहाँ भी फ़ुटबाल का खुमार छाया रहता है और लोग क्रिकेट के मोहपाश से मुक्त हैं |

अंतिम समय भी लोग सज धज के गीत गाते हुए विदा करते हैं मतलब की अंतिम संस्कार (सुपुर्दे ख़ाक) करते हैं |
      
            तभी कहते हैं भारत में अनेकता में एकता है ............हम इस एकता को बनाये रखेंगे |