Monday, April 16, 2012

गाँव के बदलाओ

बदल गई है सूरत सारी ,अब गाँव की गलियों की 
अब नहीं बहती दूध की गंगा ,रंगत बदली बगियों की
होती नहीं हैं चौपालें भी अब वृक्षों की छांव में
लगती नहीं हैं अब तो हाटें अपने प्यारे गाँव में

होली की वो रंगत गायब ,गायब फागी गीत हुए
सावन है अब सूना सूना ,झूले वृक्षों से दूर हुए  
अब नहीं देशी दीपक जलते ,दीवाली की रातों में
पार्श्व गीत की रौनक छाई,गायब मंगल गीत हुए

शीत अलाव गायब हैं अब, संध्या भजन होते ही नहीं
कैद हुए सब दीवारों में, अब द्वारे सोते ही नहीं
छप्पर की वो यादें गायब ,अब छप्पर तो होते ही नहीं 
ट्रेक्टर से अब होती जुताई ,बैलों के दर्शन होते ही नहीं

2 comments:

  1. कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक बदलाओ.....

    ReplyDelete
  2. aisa toh yaar har jagah hee ho gaya hai ab... saari purani cheezein ab sach mein obsolete ho chali hain

    That time was also good!

    ReplyDelete