Thursday, April 12, 2012

संसद और लोकपाल

लोकतंत्र का पावन मंदिर संसद गिरिजाघर है
मस्जिद ,गुरुद्वारा संसद है ,संसद सर्वोपर है
लोकतंत्र के मंदिर को अब साधक से ही डर है
मंदिर के अंदर अब तो अपराधी भी निडर है
जब चोरों को चोर कहो तो संसद क्यूँ थर्राती है
लोकपाल पारित करने से संसद क्यूँ कतराती है
संसद में जनता के प्रतिनिधि ईश्वर ही बन जाते हैं
जनता के सेवक होकर जनता को आँख दिखाते हैं
जो संसद की प्रभु सत्ता से स्वार्थ सिद्धि कर पाते हैं
ऐसे ही सांसद लोकपाल के नाम से ही डर जाते है
जनता को मानो जनार्दन मत उसका अपमान करो
जनता की आवाज सुनो और लोकपाल निर्माण करो ....

2 comments:

  1. लोकपाल तो अब लफ़ड़े में फ़ंस गया लगता है।

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  2. जी सही कहा ....मुझको भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ....

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